तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना
लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै II
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा II
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥
लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई