प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मनबसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
विकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सवाँरे॥
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