दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू
लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥