चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥